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घनानंद की एक कविता

’घनआनँद’ प्यारे कहा जिय जारत, छैल ह्वै फीकिऐ खौरन सों ।
करि प्रीति पतंग कौ रंग दिना दस, दीसि परै सब ठौरन सों ॥
ये औसर फागु कौ नीकौ फब्यौ, गिरधारीहिं लै कहूँ टौरन सों ।
मन चाहत है मिलि खेलन कों, तुम खेलत हौ मिलि औरन सों ॥

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