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जुलाई 4, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
श्याम अविनाश की दो कविताएँ (श्याम अविनाश मेरे प्रिय कवियों में से हैं. शोर शराबे से दूर प. बंगाल के छोटे से जिले पुरुलिया में तपस्वी की तरह कविता और कहानी के सृजन में दशकों से शांत भाव से लीन हैं. श्याम अविनाश जी के सृजन-परिधि में वर्गीय चेतनता से सम्प्रिक्त-जीवन का कोलाज कैलाइडोस्कोपिक रूप से बनता रहता है. ) बस्ती की लड़की एक कहानी में वह आई थी मैनें बस्ती में मिली एक लड़की से ज़रा-सी मिट्टी निकल उसे बनाया था वह बड़ी उदास बनी थी जिस मर्द से उसका सांगा हुआ पाँच बच्चे उसके पहले से थे दर्द में डूबा रहा जीवन वह मार भी गई थी कहानी में अजीब दुख भरी मौत पर दूसरे दिन ही कहानी की वह लड़की आई और कहा क्या नहीं दे सकते मुझे दूसरा जीवन क्या जवाबदेता मैं कहानी के किरदार बीच बीच में आकर करते ही हैं परेशान लेकिन वह मानी नहीं, बार-बार आकर मांगती रही दूसरा जीवन् तंग आ मैने कहानी बदल दी वह बिल्कुल दूसरी सी हो गई कहानी भी हो गई साया और तब एक दिन बस्ती की वह लड़की आई जिसकी मिट्टी निकल मैंने बनाई थी कहानी की लड़की चुप बैठी रही कई देर, फिर बोली उसका जीवन तो बदल दिया पर इसमें क्या रक्खा है मेरा बादलो तब