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नवंबर 13, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुक्तिबोध के ९३ वी जयंती के अवसर पर विशेष लेख

मुक्तिबोध: कथाकार व्यक्तित्व् डॉ. नागेश्वर लाल श्रीकांत वर्मा ने मुक्तिबोध की कहानियों के सन्दर्भ में प्रश्न पूछा है – “ क्या मुक्तिबोध के साहित्य का, जो महज साहित्य न रहकर मनुष्यता का दस्तावेज हो गया है, मूल्यांकन करने की जरुरत रह गयी है ?” प्रश्न के ढंग से बिल्कुल स्पष्ट है कि जरुरत नहीं है . फिर भी मुक्तिबोध की कविता का तथा नयी कविता, सर्जन-प्रक्रिया और अन्य विषयों के सम्बन्ध में उनकी आलोचनात्मक टिप्पणियों का मूल्यांकन किया जाता रहा है . उनकी कहानियों के मूल्यांकन के सम्बन्ध में श्रीकांत वर्मा का रुख समझ में नहीं आता . प्रतीत होता है कि दो धारणाओं के कारण उनका यह रुख है . वे समझते हैं कि मुक्तिबोध कि कहानियों में कुछ ऐसा है जो अटपटा लग सकता है; यहाँ तक कि उनमें कहानी की कमी भी है . शायद इसी कारण वे अपनी दूसरी धारणा प्रकट करते हुए सावधान करते हैं कि ‘मुक्तिबोध के साहित्य को उनके ही साहित्य की कसौटी के रूप में देखा जाये’ क्योंकि ‘उसमें इतनी प्रचंडता है कि उसपर परखने पर अपने अन्य गुणों के लिए महत्वपूर्ण दूसरों का साहित्य निश्चय टुच्चा नजर आयेगा .’ इ