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  [हिंदी कविता में विविधता और सर्जनात्मकता की बहुलता में एक अनूठी और आदिम भावबोध की कविताओं का स्त्रीवाची स्वर विश्वासी एक्का की कविताओं में दीखता है।प्रकृति का सरल सौंदर्य, प्रकृति के साथ  सह-अनुभति , और सादा जीवन का सादगी पूरित दुःख और सुख को सीधी भाषा में कहने का सधे ढंग से अभिव्यक्त करने की विश्वासी क्षमता ने मध्यवर्गीय शहरी चेतना सम्पन्न कविताओं के दौर में अलग और विशिष्ट बनाता है। भावयति में उनकी कविताएँ पहली बार लगा रहे हैं।]                                                                          
【अमितधर्म सिंहआज के दौर में एक ऐसे कवि हैं, जिनकी कविताएँ  ग्रामीण जीवन के सुख-दुख, नाद और सौंदर्य को सादगी  और गहराई के साथ उभारती हैं।भावयति में हम उनकी कविताएँ विशाल गोयल जी की टिप्पणी के साथ दे रहे हैं।】     (संघर्ष द्वारा) यथार्थ से जीतकर काेई बड़ा नहीं हाेता, सपनाें काे खाेकर बाैना जरूर हाे जाता है। बधाई भाई तुम्हारी दृष्टि कूडी के फूलों तक पहुंचती है नहीं ताे समकालीनता की नकली छवियों से ग्रस्त कविता पता नहीं कैसे कैसे ट्रीटमेंट देती इस खालिस और दमदार संघर्ष काे। साैंदर्य माैत है कुरूपता की बिना कुरूपता काे काेसे। किसी भी तरह के शक्तिमान रूपवान में सामर्थ्य नहीं अरूपवान साैंदर्य हाेने की। वैसे संघर्ष के साैंदर्य विमर्श भरे पड़े है... साहित्य न मंच है ना माेर्चा, साैंदर्य का हर परिस्थिति में संधान है, चाहे वह संघर्ष का हाे या दमन का हाे। और साहित्य ना काेई पक्ष है जिसका विपक्ष हाेना अनिवार्य हाे और न ही यह काेई थीसिस है जिसकी एंटीथिसिस गढ़ने की फिराक में असहाय हीन सा गुस्सा लगातार रहता हाे। प्रकियाओं की पहचान न हाे सकने की असमर्थता मनुष्याें काे वर्गाें में जांत में और फिर आ

पुण्य स्मरण

           सरगुजिहा बेटा : अनिरुद्ध नीरव      अनिरुद्ध नीरव छंद में जीने वाले कवि हैं। उन्होंने कविताओं में सदा ही प्रयोगशील रहने के लिए भावों और सम्वेदनाओं का अतिक्रमण किया, पर छंद पर ही अपने समूचे प्रयोग को साधा-परखा और निरखा।     दूसरी बात जो अनिरुद्ध जी को खास बनाती है, वह है उनकी कविताओं में स्थानीयता का पुट। इस स्थानीयता को वैश्विक फलक पे रचने में अनिरुद्ध नीरव अपने छन्दबद्ध अनुशासन में रहते हिन्दी साहित्य के अनुपम कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु के समीप दीखते हैं,यदि रेणु सिरचन को सिरजते हैं तो नीरव जी के यहाँ अधीन साय का घर है।लालपान की बेगम के सौंदर्य और स्वाभिमान की छवि उनके नवगीत फुलबसिया में महमह करती दीखती है। जिस समय में फणीश्वरनाथ रेणु अपने अंचल के भूगोल में विविध सामाजिक यथार्थों की परती में कथाओं की फसल लहलहा रहे थे,उसी समय में अनिरुद्ध नीरव सरगुजांचल की पथरीली भूमि पर नवगीतों में इस दूरस्थ आदिम अंचल के सुख, दुःख, नाद, और लास और सौंदर्य का बीज रोप रहे थे।         आपने अगर उनके हाल ही में प्रकाशित संग्रह "आगी लगाबे नोनी" में लिखित उनके वक्तव्य को पढ़ा होगा तो ध्