संत रविदास जी की जयंती के अवसर पर प्रस्तुत है उनकी दो रचनाएं.......
#1
अखि लखि लै नहीं का कहि पंडित, कोई न कहै समझाई।
अबरन बरन रूप नहीं जाके, सु कहाँ ल्यौ लाइ समाई।। टेक।।
चंद सूर नहीं राति दिवस नहीं, धरनि अकास न भाई।
करम अकरम नहीं सुभ असुभ नहीं, का कहि देहु बड़ाई।।१।।
सीत बाइ उश्न नहीं सरवत, कांम कुटिल नहीं होई।
जोग न भोग रोग नहीं जाकै, कहौ नांव सति सोई।।२।।
निरंजन निराकार निरलेपहि, निरबिकार निरासी।
काम कुटिल ताही कहि गावत, हर हर आवै हासी।।३।।
गगन धूर धूसर नहीं जाकै, पवन पूर नहीं पांनी।
गुन बिगुन कहियत नहीं जाकै, कहौ तुम्ह बात सयांनीं।।४।।
याही सूँ तुम्ह जोग कहते हौ, जब लग आस की पासी।
छूटै तब हीं जब मिलै एक ही, भणै रैदास उदासी।।५।।
#2
ऐसौ कछु अनभै कहत न आवै।
साहिब मेरौ मिलै तौ को बिगरावै।। टेक।।
सब मैं हरि हैं हरि मैं सब हैं, हरि आपनपौ जिनि जांनां।
अपनी आप साखि नहीं दूसर, जांननहार समांनां।।१।।
बाजीगर सूँ रहनि रही जै, बाजी का भरम इब जांनं।
बाजी झूठ साच बाजीगर, जानां मन पतियानां।।२।।
मन थिर होइ तौ कांइ न सूझै, जांनैं जांनन हारा।
कहै रैदास बिमल बसेक सुख, सहज सरूप संभारा।।३।।
रविदास जी के जितने साहित्य उपलब्ध हैं उन्हें किन्हीं और के साथ तुलना करना सामायिक नहीं है|
जवाब देंहटाएंकुछ शोधों को देखा जाय तो पता चलता है की उनके समय के कुछ अन्ध्श्रद्धालुओं ने रविदास जी के सहस्त्रों रचनाओं को आग के हवाले कर दिया था | उन नासमझों ने साहित्य की व साहित्यकारों को अपने तुच्छ विचारों के कारण पनपने न दिया|
इतने दशकों बाद यदि आज भी नयी उत्कृष्ठ रचनाओं को यदि महत्त्व न दिया गया तो आगे राम ही मालिक हैं.|