ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित ओ.एन.वी. कुरुप मलयालम कविता के वरिष्ठ, सर्वाधिक संवेदनशील, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त क्रांतिकारी जनकवि हैं| शब्द और जन की रागात्मकता के अनुपम गायक, जन परम्परा और और लोक-संपदा के रक्षक,जनकवि की कविताएँ बीसवीं व इक्कीसवीं सदी के दुख, संघर्ष, विनाश और निर्माण की कविताएँ हैं| एक जीता-जागता सच्चा जन-इतिहास; सच्ची आत्मभिव्यक्ति जनवाणी के वेग और तेज से प्रेरित और निर्मित उनकी कविताएँ प्रस्तुत हैं| फीनिक्स चिता से फिर से जी उठूंगा पंख फूलों की तरह खोलता उठूंगा| मैं एक दिव्याग्ञि का कण हो किसी मरूभु के गर्भ में प्रविष्ठ हुआ. एक मूँगे के बीज को दो पत्तियों की तरह स्वर्णपंख डोलता मैं ऊपर उठता गया ज्वालामुख खोल जगे हिरण्यमय नाल की तरह अग्नि से अंकुरित हुआ| निदाघपुरुष एक व्याघ की तरह तीर मारता, रक्त का प्यासा बन जिस धरती पर चल रहा है उसमें मैं छाया व प्रकाश फैलाता उड़ता हूँ| क्या जगह-जगह हरे बीज उगे ? रेत के पाट में क्या फूल खिले ? क्या मरुस्थली सूर्य-महाराज की तरफ उठता स्वर्णमुख राग बन ज्वलित हो उठी ? मैं उन दलों से उठता उन्मत्त मधु शलभ होकर जब उड़ूँ गाता उड़ूँ, दो...
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