सरगुजिहा बेटा : अनिरुद्ध नीरव अनिरुद्ध नीरव छंद में जीने वाले कवि हैं। उन्होंने कविताओं में सदा ही प्रयोगशील रहने के लिए भावों और सम्वेदनाओं का अतिक्रमण किया, पर छंद पर ही अपने समूचे प्रयोग को साधा-परखा और निरखा। दूसरी बात जो अनिरुद्ध जी को खास बनाती है, वह है उनकी कविताओं में स्थानीयता का पुट। इस स्थानीयता को वैश्विक फलक पे रचने में अनिरुद्ध नीरव अपने छन्दबद्ध अनुशासन में रहते हिन्दी साहित्य के अनुपम कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु के समीप दीखते हैं,यदि रेणु सिरचन को सिरजते हैं तो नीरव जी के यहाँ अधीन साय का घर है।लालपान की बेगम के सौंदर्य और स्वाभिमान की छवि उनके नवगीत फुलबसिया में महमह करती दीखती है। जिस समय में फणीश्वरनाथ रेणु अपने अंचल के भूगोल में विविध सामाजिक यथार्थों की परती में कथाओं की फसल लहलहा रहे थे,उसी समय में अनिरुद्ध नीरव सरगुजांचल की पथरीली भूमि पर नवगीतों में इस दूरस्थ आदिम अंचल के सुख, दुःख, नाद, और लास और सौंदर्य का बीज रोप रहे थे। आपने अगर उनके हाल ही में प्रकाशित ...
इस ब्लॉग को बनाने का मकसद सिर्फ इतना है की इससे जुड़ें, और अपनी स्तरीय रचनायें जैसे कविता, कहानी, और साहित्य लेख भेज कर मुझे साहित्य को जन मानस के हृदय पटल तक पहुंचाने में मदद करें, हम आपके आभारी रहेंगे आप अपनी रचनाएँ मेरी आई.डी rkm.13764@gmail.com पर भी भेज सकते हैं.