निराला माने वसंत का अग्रदूत, हिन्दी के महाकवि निराला की आज वसंत पंचमी के दिन जयंती के अवसर पर उनके कुछ वासन्ती गीत प्रस्तुत है: रँग गई पग-पग धन्य धरा,--- हुई जग जगमग मनोहरा । वर्ण गन्ध धर, मधु मरन्द भर, तरु-उर की अरुणिमा तरुणतर खुली रूप - कलियों में पर भर स्तर स्तर सुपरिसरा । गूँज उठा पिक-पावन पंचम खग-कुल-कलरव मृदुल मनोरम, सुख के भय काँपती प्रणय-क्लम वन श्री चारुतरा सखि, वसन्त आया सखि वसन्त आया । भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया । किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका, मधुप-वृन्द बन्दी-- पिक-स्वर नभ सरसाया । लता-मुकुल-हार-गंध-भार भर, बही पवन बंद मंद मंदतर, जागी नयनों में वन- यौवन की माया । आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे, केशर के केश कली के छुटे, स्वर्ण-शस्य-अंचल पृथ्वी का लहराया ।
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