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अग्निकांड- माक्सिम गोर्की

मेरे पुस्तकों के संग्रह में एक किताब पुरानी और ठीक-ठाक कटी -फटी है| इस किताब का नाम गोर्की के संस्मरण है, जिसका पता पृष्ठ दर पृष्ठ कोनों में अंकित किताब के नाम से चलता है| किताब के बचे हुए आख़िरी पन्ने पर नीली स्याही से एक अपरिचित दस्तख़त है, अनुवादक का नाम इसी स्याही से इलाचंद्र जोशी लिखा हुआ है, विश्व के महान कथाकार का अनुवाद हिन्दी के प्रख्यात कथाकार के द्वारा मुझे काफ़ी महत्व का लगा | अंजाने पुस्तक प्रकाशक, जिन्होने यह अद्भूत आयोजन किया है,के प्रति आभार सहित प्रस्तुत है मक्सिम गोर्की की आग के सम्मोहक सौंदर्य से अभिभूत करती एक रचना अग्नि-कांड फ़रवरी के महीने की एक अंधेरी रात जब मैं निज़ानी नोवोगोरोद के अंतर्गत ओशार्स्क स्क्वायर नमक स्थान में पहुँचा,तो किसी एक मकान के छतवाले कमरे की खिड़की से निकलती हुई आग की लपट लोमड़ी की दूम के समान दिखाई दी| उस अंधेरी रात में वह लपट आतिशबाज़ी की तरह बड़े-बड़े चिनगारे उगल रही थी| चिनगारे एक-एक करके बड़े धीरे से अनिच्छा से पृथ्वी पर गिर रहे थे| आग के उस सौंदर्य उस मुझे विचलित कर दिया| ऐसा मालूम होता था जैसे लाल रंग का कोई जानवर अकस्मात अंधेरे क...