जब कभी कहानियों में अपनी बेचैनी को शांत नहीं कर पाता तो कविताएँ लिखने बैठ जाता हूँ. ऐसी ही मनोदशा में लिखी हुई एक कविता प्रस्तुत- आधे चाँद की रात अधकटे सेब की भभकती गंध की तरह तुम्हारी महक की बातें करता अधबने मकानों के बीच तलाशता तुम्हारी छवि को बनाते-टूटते-बिखरते रंग और रेखाओं को गहरी स्याही में घोलता जाता, देर तक डूबती अधूरे सांझ की गहरी खाई में. अधकटे खेतों के विस्तार में- अधपकी फसलों को तेज घाम,पकाने को आतुर ओसकणों से झुके पौधों को झुलसाता जाता है- अपने तेज से. वैसे ही पकना चाहा था- दहकते अंगारों में अपने सपनों को बारिस-जल ने गला दिया आधे पके हिस्से जो गले न थे पानी की बौछार से आधे चाँद की रात में आधा कटा पहाड़ इस पहाड़ की आधी कटी विशाल दैत्याकार छाया घेरती जाती है, आधी बन पाई स्मृतियों को.
इस ब्लॉग को बनाने का मकसद सिर्फ इतना है की इससे जुड़ें, और अपनी स्तरीय रचनायें जैसे कविता, कहानी, और साहित्य लेख भेज कर मुझे साहित्य को जन मानस के हृदय पटल तक पहुंचाने में मदद करें, हम आपके आभारी रहेंगे आप अपनी रचनाएँ मेरी आई.डी rkm.13764@gmail.com पर भी भेज सकते हैं.