(जीवन संगिनी गीता के लिए)
गहराती शाम में
सब्जियों की टोकरी से
चंद आलू और बरबट्टी अलगाती तुम|
जल, हाँ अश्रुजल से धूंधलाई आँखों को
सपनों के सोखते से सुखाने की कोशिश में,
स्याह रंगत में घुलती सांझ को सुख की रंगीनियों से
जगमगाने की कोशिश में रत मैं
बरबट्टी तोड़ती और मन के भीतर की ऊष्म आर्द्रता,सिर झुकाए,
आँखों में घोलती तुम,
देख नहीं सकोगी अपनी आँखों के केसर घुले अश्रुजल को
मेरे पास वो ताब नहीं
या
वो दर्पण नहीं कि
तुम्हारी आँखो में केसर घुले आँसुओं की झलक
परावर्तित कर सकूँ|
छौंके प्याज के भुनाने की गंध
पूरे घर को जलन के बावजूद
सुवादू सुवास से भर रही थी|
घर में केवल तुम और मैं बैठे थे तुम्हारी रसोई में|
I read your poem which you wrote for Aunty jee its awesome and shows every feeling you both share i personally liked it........ From Shiva
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